
नालंदा, बिहार : हैरान कर देने वाली यह खबर बिहार की नालंदा जिले के सिलाव थाना क्षेत्र के मोरगांव की है। शातिर बहरूपिया (Man held after living 41 years as fraud son) ने 150 बीघा जमीन के मालिक दिवंगत कामेश्वर सिंह की सम्पति को हड़पने के लिए सडयंत्र रचा। अपने लालच के कारण बेचारे माँ,बाप के भावनाओ के साथ खिलवाड़ किया। 40 साल तक क़ानूनी लड़ाई के बाद नालंदा जिले के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्र की अदालत ने दिगवंत कामेश्वर सिंह के 16 वर्षीय लापता बेटे की जगह लेकर 41 साल तक घर में रहने वाले बहरूपिये दयानन्द गोसाईं को धोखाधड़ी की दोषी पाते हुए महज 3 साल की सजा सुनाई है।
4 साल के आस के बाद मिला बहरूपिया बेटा
मोरगांव के निवासी दिगवंत कामेश्वर की जिंदगी में दुखद मोड़ तब आया जब उनके इकलोते बेटे कैन्हया सिंह मैट्रिक की परीक्षा देने के दौरान वर्ष 1977 में गुम हो गए। काफी खोजबीन करने के बावजूद भी बेटा नहीं मिला तो उन्होंने सिलाव थाना में मामला दर्ज कराया। एकलौते बेटे की आस में 4 साल बीत गए। कुछ समय बाद 1981 में पड़ोसी गाँव के कोशोपुर में पूरी प्लानिंग के साथ दयानंद गोसाईं साधु बनकर आया। गाँव के लोगो से खुद को लगातार लापता कन्हैया बताता रहा। ताकि ये खबर कन्हैया के पिता दिगवंत कामेश्वर तक पहुंच जाये। आखिर वही हुआ। यह खबर आग की तरह फैल गई।
Man held after living 41 years as fraud son
दिगवंत कामेश्वर को उस युवक और कुछ अन्य लोगों के कहने पर विश्वाश हो गया की वह उन्ही का बेटा है। इसलिए वे उसे अपने घर ले गए। युवक साधु के वेश में था इसलिए वे धोका खा गए। लेकिन कन्हैया की माँ उसे अपना बेटा मानने से इंकार कर दिया। क्युकि उनका दिल मानने को तैयार ही नहीं था कि वह उनका बेटा कैन्हया है। लेकिन गाँव वालो कि दबाव कि वजह से वह चुप रह गई। दयानंद गोसाईं कामयाब हुआ और एकलौते वारिस कैन्हया सिंह के रूप में घर में रहने लगा। लेकिन माँ रामसखी देवी उसे अपना बेटा कन्हैया नहीं मानती थी और उस पर शक करती रहती थी।
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आखिर में नवंबर 1981 में जब उनका धैर्य जवाब दे गया तो उन्होंने सिलाव थाने में दयानंद के खिलाफ मामला दर्ज करा दी।
लेकिन बेचारी रामसखी दयानंद कि सच्चाई सामने आने से पहले ही भगवान को प्यारी हो गई। साल 1995 में दिगवंत कामेश्वर सिंह और उनकी पत्नी रामसखी देवी की मिर्त्यु हो गई
माँ की मौत के बाद बेटी सच्चाई सामने लाई
माता-पिता के मौत के बाद आगे की क़ानूनी लड़ाई उनकी बेटी विद्या देवी ने जारी रखा। उनके वकील का मानना है कि ये सब षड़यंत्र जमीन जायदाद हड़पने के लिए किया गया है क्युकि कामेश्वर सिंह के घर में लगभग 4 दशक रहने के दौरान दयानन्द ने करीब 50-55 बीघा जमीन बेच दिया था। इसी बीच उसने शादी भी की। कन्हैया की माँ ने अपनी गवाही में बयान दिया था कि उनके बेटे के सिर पर चोट का निशान था जो दयानन्द के सिर पर नहीं था। नालंदा जिले के अभियोजन पदाधिकारी राजेश कुमार का कहना है कि अभियोजन कि ओर से 2014 से ही डीएनए टेस्ट करने कि मांग की गई।
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Man held after living 41 years as fraud son
दयानन्द गोसाई डीएनए टेस्ट से मुकरता रहा। आखिर में 2022 में अदालद को लिखित रूप से आवेदन देकर टेस्ट कराने से इंकार कर दिया। कोर्ट के निर्देश पर प्रमाण पत्र की जांच कराइ गई वो भी फर्जी निकला। उससे पूछा गया कि 1977 से 1981 के बीच कहा था तो वो भी नहीं बता पाया। बाद में जमुई जिले के किसी गाँव का रहने वाला एक आदमी ने अदालत को बताया कि वह उसी के गाँव का रहने वाला है। उसने बताया कि यह दयानन्द गोसाई है। प्रभु गोसाई का तीसरा बेटा। जिला अदालत से यह मामला पटना उच्च न्यायालय होते हुए सर्वोच्च न्यायलय तक पहुँचा और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर इस मामले की सुनवाई फिर से शुरू हुई।
सभी दलीले सुनने के बाद नालंदा जिला न्यायालय ने दयानन्द गोसाई को दोसी साबित करते हुए तीन साल की कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई। अदालत के फैसले के बाद दयानन्द गोसाई ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा की बहनों की नजर संपत्ति पर है। यह सब संपत्ति के लिए किया जा रहा है । फैसले के बाद कामेश्वर सिंह की बेटी विद्या देवी का कहना है कि माँ कि इच्छा थी कि बहरूपिये कि सच्चाई सामने आये। आज वो रहती तो बहुत खुश होती। माँ कि इच्छा कि पूर्ति के लिए हमने ये सब किया। हमें इससे कोई लाभ नहीं है।
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